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आज कुछ ऐसी बात हुई कि पुरानी मूवी का एक गाना याद आ गया- ‘हम इंतजार करेंगे तेरा कयामत तक, खुदा करे कि कयामत हो और तू आए।‘ शाम का समय था। हमारी सोसायटी के प्रेसिडेंट शर्मा जी बाहर टहल रहे थे। मुझे देखते ही पास आए और बोले, ‘आपको नैयर के बारे में पता चला?’ मैंने पूछा, ‘क्या?’ वह बोले, ‘नैयर अपना फ्लैट बेचकर अपनी बीवी के पास कोच्चि जा रहा है।‘ बीवी के पास? मुझे हैरानी हुई। जिस नैयर के बारे में वह बात कर रहे थे, उसकी उम्र कोई साठ से उपर होगी। आठवीं मंजिल के एक फ्लैट में कई साल से वह अकेला रहता है। चुपचाप काम पर चले जाना और चुपचाप शाम को फ्लैट में घुस जाना। शांत व शालीन इंसान। हम सब उसके बारे में बहुत कम जानते थे और उसने भी सोसायटी की किसी गतिविधि में दिलचस्पी नहीं दिखाई थी।
‘ये बीवी कहां से आ गई?’ मैंने पूछा। शर्मा जी ने जो बताया, वह पूरा किस्सा कुछ यूं है। नैयर शादीशुदा है और उसकी दो बेटियां हैं। बीवी कोच्चि के किसी कॉलेज में लेक्चरर है। करीब बीस साल पहले दोनों अलग हो गए थे। पता नहीं क्यों, बीवी नैयर के साथ रहने को तैयार नहीं थी, इसीलिए वह अकेला दिल्ली आ गया। इस दौरान नैयर ने बीवी को मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह अपने हठ पर अड़ी रही। अब दोनों बेटियों की शादी हो चुकी है और बीवी कुछ महीनों में रिटायर होने वाली है। शर्मा जी ने अर्थभरे अंदाज में पूरे किस्से का पटाक्षेप करते हुए कहा, ‘बुढ़ापे में न तेरा कोई और, न मेरा कोई ठौर।‘ मेरी जुबान से बस ये शब्द निकले, ‘चलो अच्छा ही हुआ। कम से कम जिंदगी की सांझ में तो समझ आई।‘
शर्मा जी तो विदा हो गए, लेकिन नैयर का चेहरा मेरी आंखों के आगे तैरने लगा। करीब चालीस की उम्र में वह अपनी बीवी से अलग हो गया, बीस साल दोनों ने अकेले गुजार दिए और अब बुढ़ापे में एकदूसरे की सुधि आई है। क्या अलगाव की जो भी वजह रही होगी, वह अब दूर हो चुकी है? क्या ये महज संयोग है कि रिटायरमेंट से चंद महीने पहले अचानक नैयर की बीवी को अपनी बीस साल पुरानी गलती का अहसास हो गया है? या कि ये सच्चा प्यार है, जो जिद-हठ और न जाने किन-किन चीजों के नीचे दफन था और अब सामने आ गया है? तो क्या ये सच्चे प्यार की विजय है? यानी यही सच्चा प्चार है? या कि बुढ़ापे की असमर्थता दोनों को इस उम्र में एकदूसरे के करीब ले आई है?
इतना तो तय है कि दोनों के इस फैसले को रूमानी नहीं कहा जा सकता। ये भी नहीं माना जा सकता कि इस उम्र में दैहिक आकर्षण या जरूरत निर्णायक वजह बन गई होगी। तो ये क्या है? क्या अकेलापन, जिसकी आग में नैयर तो बीस साल से झुलस ही रहा था और अब उसी अकेलेपन ने नैयर की बीवी को अपना हठ तोड़ने पर बेबस कर दिया? आखिर दोनों बेटियों की शादी के बाद वह अकेली हो गई होगी और अब तो रिटायर भी होने वाली है, यानी कामकाजी दुनिया से भी विदाई। हो सकता है, ऐसे में उसे अपने अकेलेपन से घिरे भविष्य की चिंताओं-आशंकाओं ने डरा दिया हो और तब उसे हजार किलोमीटर दूर, अपने अकेले पति की याद आ गई हो। क्या पता? आप सुधि पाठक ही इस बारे में कुछ बता सकते हैं। मेरे लिए तो, जो भी हो, यह खबर बड़े सुकून की है कि बीस साल से बिछ़ड़े मिलने जा रहे हैं।
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